
लूपस (एस,एल,ई ) - एक ऑटो - इम्यून बीमारी है जो शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित या नुक़सान पहुँचा सकती है
यह बीमारी आमटोर पर युवतियों, जिनकी उम्र १५ से ४४ साल, को प्रभावित करती है
बच्चों में होने वाली यह बीमारी ज़्यादा नुक़सानदायक हो सकती है अगर सही समय पर बीमारी ना पहचानी जाय या इलाज ना मिल पाय
ऑटो इम्यून बीमारी में - शरीर की प्रतिरोधक शक्ति (इम्यून सिस्टम ) - antibodies बनती हैं जो कि स्वस्थ व्यक्ति में बाहरी आक्रमणकारी जैसे bacteria व वाइरस से बचाती है व उन्हें ख़त्म करती हैं , पर ऑटो इम्यून बीमारी में वह ऑटो ऐंटीबाडीज़ व्यक्ति के शरीर के अँगो को ही दूष्प्रभाव पहूंचती हैं
लूपस किसी व्यक्ति को क्यूँ होती है - इसका एक प्रभावी कारण अभी थक नहीं मिला है, पर तीन चीज़ों का इसके होने में प्रभाव दिखता है - अनुवंशिकता, शरीर के होरमोंस, व पर्यावरण कारक
पर्यावरण कारक में प्रमूखता से दो चीज़ें प्रभावित करती हैं - सूर्य से निकलने वाली अल्ट्रा वायलेट किरणें, व कुछ दवाइयाँ
लूपस संक्रामक नहीं होती - मतलब की आपको किसी से या आप किसी को लूपस बीमारी नहीं दे सकते
लूपस के लक्षण अनेक हैं - इसलिए इसे पहचान ने में देरी हो सकती है। हर व्यक्ति में यह अलग अलग तरीक़े से देखी जाती है
कुछ प्रमूख लक्षणो में
- धूप में चमड़ी का लाल हो जाना, खास तोर पर नाक व गाल पर चमड़ी का लाल होना। कुछ ही समय में बालों का बहुत ज़्यादा झड़ना व कुछ भाग में बालों का उड़ जाना
बहुत दिनों से जोड़ों में दर्द व सूजन का होना
पर्याप्त नींद के बाद भी बहुत ज़्यादा थकान व कमज़ोरी लगना
बहुत दिनों से बूखार का रहना व उसका कोई ठोस कारण ना मिल पाना
ह्रदय व फेफड़े की झिल्ली में पानी का भर जाना जिससे की साँस लेने में छाती में दर्द व तकलीफ़ होना
ख़ून की कमी, सफ़ेद कोशिकाओं व प्लेट्लेट्स का कम होना
पेशाब में ख़ून व प्रोटीन का जाना, किड्नी की रिपोर्ट में ख़राबी आना इत्यादि
लूपस में किड्नी व मस्तिष्क का प्रभावित होना - ख़तरनाक लक्षणो में से हैं
सबसे महत्वपूर्ण शुरुआती टेस्ट - ANA (ANTI NUCLEAR ANTIBODY) टेस्ट है। अगर ANA टेस्ट पॉज़िटिव है तो लूपस हो सकता है - उसके आगे की महत्वपूर्ण जाँच कराई जाती है जिस से की कन्फ़र्म हो जाए
लूपस में एक ख़ास तरह की औती ऐंटीबाडीज़ होती हैं जिन्हें एंटी फ़ोस्फो लिपिड एंटी बॉडी कहते हैं - यह गर्भावस्था में complications, बार बार गर्भपात होना, शरीर में ख़ून के थक्के बनाने का कारण हो सकते हैं।
वैसे तो लूपस से प्रभावित महिलाओं की गर्भावस्था “अति समवेदनशील - हाई रिस्क” होती है पर आधुनिक तकनीक व बीमारी को अच्छे से समझने के कारण क़रीब ८० प्रतिशत लूपस मरीज़ में प्रसव सामान्य होता है । लूपस मरीज़ों को गर्भवती होने से पहले बीमारी को बिलकुल ठीक करना चाहिए अन्यथा लूपस, गर्भावस्था में गम्भीर रूप धारण कर सकती है।
लूपस को ठीक रखने में जो दवा अहम भूमिका निभाती है वह हाइड्रोकसी-क्लोरोक्वीन है।हर लूपस मरीज़ को यह लेना चाहिए अगर कोई दिक़्क़त ना हो रही हो तो
लूपस बीमारी की गम्भीर अवस्था में स्टेरोइड का बहुत महत्वपूर्ण रोल है - परंतु इस दवा के लम्बे इस्तेमाल से शरीर में नुक़सान होने के सम्भावनाएँ बड़ जाती है - इसलिए अब विश्व में इसके कम इस्तेमाल व मरीज़ के ठीक होने पर जल्द मात्रा कम कर इसे बंद करने की तकनीकों पर गहन अध्ययन हो रहा है । इस अंजाम को अमल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली दवाएँ - रिटुक्सीमेब व बेलिमूमेब है
बेलिमूमेब अभी भारत में उपलब्ध नहीं है। रिटुक्सीमेब बहुत समय से भारत में उपलब्ध है व गठिया के मरीज़ों में बहुत अच्छा असर दिखा रही है
रिटुक्सीमेब के लूपस के इलाज में बहुत अच्छा असर है - व जो मरीज़ बेसिक दवाई से ठीक नहीं हो पाते जिन्हें “रिफ़रेक्टरि बीमारी” कहते हैं उन मरीज़ों में इसका असर देखा गया है
रिटुक्सीमेब - शरीर में ऑटो - ऐंटीबाडी बनाने वाली कोशिकाओं को ख़त्म कर देती है जिससे कि बीमारी की जड़ पर ही असर आ जाता है और बीमारी को रोकने में सहायता मिलती है
ज़ूवेनाइल लूपस - बच्चों में होने वाली बीमारी को कहते हैं
यह एक लाख बच्चों में से एक बच्चों को होती है
आमतोर पर आठ से दस वर्ष की शुरुआती आयु के बच्चों को प्रभावित करती है
अधिकतर बच्चों में लम्बी अवधि का बूखार, थकान, मासपेशियों में कमज़ोरी, व हाथ पेरों में सूजन के लक्षण परमुखत्या से दिखायी देते हैं
बच्चों में किड्नी पर प्रभाव ज़्यादा देखने को मिलता है - इसलए समय पर ज़ूवेनाइल लूपस को पहचान कर समय पर इलाज से स्वस्थ जीवन काटा जा सकता है
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